” आभास “
दिखता है पर साफ साफ नहीं,
कानून तो है मगर इंसाफ नहीं ।
दोस्त अगर, तो सब चलता है,
पर दुश्मन को कुछ माफ नहीं ।
कभी बदल जाए यहां मौसम,
किसीको कुछभी एहसास नहीं ।
है नैय्या बीच भंवर फसी और,
खुद नाविक पर विशवास नहीं ।
कुछ महल दु महलेे इनके पास,
पर अच्छा रहने को आवास नहीं ।
वक्त कितना तो बदला है ‘मिलन’
खुद इतना भी हमें आभास नहीं ।।
मिलन ” मोनी “