” संत ”
न रावण रहेगा न कंस,
ना जिसमें उनका अंश,
इस सनातन धरती पर,
बस राम कृष्ण का वंश !!
वस्त्र गेरुआ बाजे शंख,
माथे सजे तिलक चंदन,
इस विश्व में फैलाएं हम,
सनातन धर्म का आनंद !!
राजा बने या कोई रंक,
सबका एक जैसा अंत,
पशु पक्षी या हो मानव,
सबके ऊपर एक संत !!
कहो सनातन एक पंथ,
हिंदू बस इसका है अंग,
ब्रह्मा विष्णु और महेश,
महिमा इनकी है अनंत !!
सावन भादो या बसंत
सबके लिए ही सुमंत,
सरदी गरमी बरसात,
फैलाएं जग मरकंद !!
सपनों के लगा पंख,
बहती ब्यार मंद मंद,
गगन धारा का मिलन,
कविता जैसा है छंद !!
मिलन ” मोनी ”