Archive | July, 2018

Payaam

24 Jul

इन्तेजार-ए-वस्ल में यह मकाम आया
इन्तेहाई मुहब्बत का हमें पयाम आया !

कितना वक़्त हो गया दीदार किये हुए
वो ख्यालों से गए तो यह ख़याल आया !

यादों में रहे वो तो एक किताब की तरह
वो जहन से गए तो उनका सलाम आया !

मुदात्तों उनकी हमें कोई खबर न मिली
शहर छोड़के गए तो उनका पैगाम आया !

उनके हर सवाल का जवाब दिया मैंने तो
मेरे जवाबों पर उनका नया सवाल आया !

ठहरी हुयी झील जैसी तन्हाई में ‘मिलन’
यादों के पत्थर फेके तो एक सैलाब आया !!

मिलन “मोनी”

Surkhaab

23 Jul

कौन कहता है ऊपर जाके कोई हिसाब नहीं होता
सच है,ऊपर वाले की लाठी का जवाब नहीं होता !

हर मौसम के यूँतो अपने फायदे और नुक्सान हैं
और कोई मौसम हद से ज़्यादा खराब नहीं होता !

सबको अपने कर्मों का मुनासिब फल मिलता है
फिरभी अपना हर फैसला तो आजाब नहीं होता !

सुख के खातिर लोग जाने क्या क्या नहीं करते
उसपे भी ज़िन्दगी में हर एक शादाब नहीं होता !

रौशनी का मोहताज रहता है यह आसमांन भी
आफताब नहीं तो कभी यह महताब नहीं होता !

खूबसूरत बहुत लगता है हर परिंदा ज़मीन पर
मगर कुछ भी हो हर पक्षी सुरखाब नहीं होता !

हर सवाल जवाब के लिए रहता तैयार’मिलन’
कुछ भी हो जाए वो कभी लाजवाब नहीं होता !!

मिलन “मोनी”

Kanaaraa Karne

20 Jul

शाम के बाद अंधेरों से कनारा करने
दिल जलाना पडा हमको चरागा करने !

सौप दीं पतवारें सफीने की मझधार को
कश्तियों का साहिल तक सहारा करने !

न कट सकी रात तेरे बिना तो बैठ गए
सागरों-खुम से बाक़ी का गुज़ारा करने !

इश्क का धुँआ ये पहुंचा दरो-बाम तक
इकठ्ठा हो गए बाहर लोग नज़ारा करने !

इशारे इशारे में हमने दिल लिया दिया
आया हूँ मैं आज फिर वो इशारा करने !

ज़माना हो गया ‘मिलन’ शरारतें किये
आया हूँ मैं आज वो सब दोबारा करने !!

मिलन “मोनी”

Bhlaana

15 Jul

ज़िन्दगी का नहीं ठिकाना है
आज आना तो कल जाना है !

गया वक़्त न लौतेगा वापस
हर क़दम सोच कर उठाना है !

रस्ता मंजिलों का आसाँ नहीं
हरमोड़ पे नया मोड़ आना है !

मुश्किलें अगर साथ ना चलें
तो यह सफर बहुत सुहाना है !

जो लम्हे सुकून के नहीं होते
उन्हें किसी तरह भूल जाना है !

जो वक़्त तेरे साथ साथ बीते
वही वक़्त असली खज़ाना है !

कुछ मिला कुछ लिया’मिलन’
ग़म से ही तो दिल बहलाना है !!

मिलन “मोनी”

Unka Naam

13 Jul

किताब मैंने लिखी नाम उनका हो गया
पहली ग़ज़ल में जिक्र उन्हीका हो गया !

हर शेर बड़ी सलीके से सजाया गया था
यह भी बहुत नाकाबिले तारीफ़ हो गया !

हुस्न की तारीफ़ में कुछ ऐसा कह गया
ग़ज़ल मेरी थी पर चर्चा उनका हो गया !

मेरे हुनर की किसी ने सरहाना नहीं की
जिसनें पढ़ा वह उनका दीवाना हो गया !

मेरा नाम किताब के ऊपर ही लिखा था
मशहूर नाम उनका हर दुकां में हो गया !

खरीदने किताब लोग उसके नाम से गए
साथ में मेरा भी कहीं इस्तेमाल हो गया !

ज़िक्रे चांदनी तो महशर में रात भर हुआ
ध्यान मेरे कलाम पे किसी का नहीं गया !

मुस्कुरा कर चांदनी ने जो रूह को छुआ
जो मेरा मुरीद था अब उसी का हो गया !

चाह कर उसे तुझ को ही चाहा ‘मिलन’
जिसजिस ने तुझे चाहा मेरा भी हो गया !!

मिलन “मोनी”