इन्तेजार-ए-वस्ल में यह मकाम आया
इन्तेहाई मुहब्बत का हमें पयाम आया !
कितना वक़्त हो गया दीदार किये हुए
वो ख्यालों से गए तो यह ख़याल आया !
यादों में रहे वो तो एक किताब की तरह
वो जहन से गए तो उनका सलाम आया !
मुदात्तों उनकी हमें कोई खबर न मिली
शहर छोड़के गए तो उनका पैगाम आया !
उनके हर सवाल का जवाब दिया मैंने तो
मेरे जवाबों पर उनका नया सवाल आया !
ठहरी हुयी झील जैसी तन्हाई में ‘मिलन’
यादों के पत्थर फेके तो एक सैलाब आया !!
मिलन “मोनी”