” आम आदमी “
आम आदमी आदमी को खटक रहा है,
हर आदमी अपने रास्ते से भटक रहा है ।
यहां ज़माना तो मशगूल है सियासत में,
एक तबका दूसरे का हक़ झटक रहा है ।
कौन घर घर अनाज पहुंचाएगा देश में,
किसान खुद को फंदों पर लटका रहा है ।
हिदू मुस्लिम ईसाई धर्म में कौन बड़ा है,
सवाल युगों से आजतक लटक रहा है ।
भ्रष्ट नेता लूटते रहे देश की यह दौलत,
आम आदमी अपना सिर पटक रहा है ।
माल मलाई ‘मिलन’ खा रहे दौलत वाले,
गरीब यहां पे रूखा सूखा गटक रहा है ।।
मिलन ” मोनी “