एक कोशिश करी मुस्कुराने की
लग गयी पर नज़र ज़माने की
हदसे ज़्यादा ही याद आए तुम
जितनी कोशिश करी भुलाने की
तेरे हुस्न और इश्क की खातिर
इस दिलसे दिललगी निभाने की
ज़ख्म पुराने तो उभर गए सारे
जितना चाहा दिल में दबाने की
बात सीधी वो कभी नहीं करता
लाज़रूरी है उसे मुह लगाने की
जो मयस्सर शराब है आँखों से
क्या ज़रुरी है मयक़दे जाने की
परिंदे यादो के कैद थे ‘मिलन’
अब बारी है सभी को उडाने की !!
मिलन “मोनी”