Archive | September, 2020

Marg

20 Sep

” मर्ग”

मेरी नाकामयाबयों का मर्म सबको पता है

उस तक तो पहुंचने का मर्ग सबको पता है ।

सिर्फ प्यार मोहब्बत से गुज़ारा नहीं होता,

दोस्त और दुश्मन का धर्म सबको पता है ।

दोनों सूरतों में आंखे नम हो जाती अपनी,

मिलन और बिछोह का भर्म सबको पता है ।

बैठे बिठाए कुछ भी तो हासिल नहीं होता,

मेहनत और लगन का चर्म सबको पता है ।

गिर गिर कर ही संभलता है आदमी यहां,

अर्श और फर्श का ये फर्क सबको पता है ।

आजान और मंदिरों की घंटियां ‘मिलन’

रब तक तो पहुंचने का कर्म सबको पता है ।।

मिलन मोनी”

Gumaan

19 Sep

” गुमान “

कोने में छुप के बैठी है दिल के मकान में

ढूंढा जिस खुशी को इस हयाते दुकान में ।

झांका चारों तरफ कहीं मिला नहीं अहम

पाया उसको हमने अपने ही गिरहबान में ।

जिस जिस्म को संवारा ताउम्र दुलार से

जला दिया उसे भी आखिर शमशान में ।

दुश्मन कहीं छिपा हैं नजदीक ही अपने

आता नहीं है जल्दी कभी वो पहचान में ।

लूट नहीं सकता कोई चैनो सुकून हमारा

रहता है कौन आजभी इस झूठे गुमान में ।

जीत जीत कर भी हारता जाता है ‘मिलन’

खिलाड़ी बड़ा नहीं है मोहब्बत के मैदान में ।।

मिलन “मोनी”

Mukammal

1 Sep

“मुकम्मल”

ख़्वाब जो देखा रात भर दिन में मुकम्मल हो गया
दिन में जिसका सपना देखा रात मुकम्मल हो गया ।

मिट्टी से बनाए पुतले को मुख्तलिफ रंग रूप दिया
जिस्म को जान मिली तो जीवन मुकम्मल हो गया ।

कुछ हमने कहा कुछ उसने कहा दोनों मिला कर
ज़िन्दगी की ग़ज़ल का हरेक शेर मुकम्मल हो गया ।

जब मरद को सवेरा और रात औरत को कहा गया
प्यार से मिले दोनों तो यह संसार मुकम्मल हो गया ।

सुर और ताल की सजती रहीं महफिलें बहुत मगर
आशा लता के गायन से संगीत मुकम्मल हो गया ।

बिंदु से बिंदु मिला तो खींच गई एक रेखा उनसे ही
एक ज़रा सा कोण दिया तो वृत मुकम्मल हो गया ।

रातों के हर पहर पर ‘मिलन’ उन्माद का असर रहा
विसाले इश्क़ का हर लम्हा लम्हा मुकम्मल हो गया।।

मिलन “मोनी”

Prabhu Ki Leela

1 Sep

“प्रभु की लीला “

भोर सुनहरा आसमां जो दिन में नीला है
किरणे सूरज की मगर चांद चमकीला है ।

जो आता यहां एक दिन वही तो जाता है

यहीं है कृष्ण लीला औ यहीं रामलीला है ।

धन शक्ति से हर सच्चाई ख़रीद ली जाय
सियासत की अनोखी यहीं एक लील है ।

अच्छाई और बुराई का ये साथ पुराना है
इंसान कभी गमगीन तो कभी रंगीला है ।

कभी नाव गाड़ी तो कभी गाड़ी नाव पर
ज़िन्दगी की यही तो अजब रास लीला है ।

चोली दामन का ये साथ ही तो है ‘मिलन’
कोमल बहुत गुलाब मगर झाड़ कंटीला है ।।

मिलन “मोनी” 30/8/20