” मर्ग”
मेरी नाकामयाबयों का मर्म सबको पता है
उस तक तो पहुंचने का मर्ग सबको पता है ।
सिर्फ प्यार मोहब्बत से गुज़ारा नहीं होता,
दोस्त और दुश्मन का धर्म सबको पता है ।
दोनों सूरतों में आंखे नम हो जाती अपनी,
मिलन और बिछोह का भर्म सबको पता है ।
बैठे बिठाए कुछ भी तो हासिल नहीं होता,
मेहनत और लगन का चर्म सबको पता है ।
गिर गिर कर ही संभलता है आदमी यहां,
अर्श और फर्श का ये फर्क सबको पता है ।
आजान और मंदिरों की घंटियां ‘मिलन’
रब तक तो पहुंचने का कर्म सबको पता है ।।
मिलन मोनी”