” पसंद नहीं “
इश्क के नाज नखरे तो मुझे पसंद नहीं,
ये आशिकी जिंदगी में मुझे पसंद नहीं ।
निकलीं हैं शायरों की कलम से गजलें,
मिसरे हैं लाजवाब पर मुझे पसंद नहीं ।
मोहब्बत की आग हर तरफ लगी हुई,
ये आतिशी मौसम है मुझे पसंद नहीं ।
बरसात का आलम होता है दिलकश,
पर आंसुओं की बारिश मुझे पसंद नहीं
एक आसान तरीन रस्ता इश्क में बनाते,
समझौतों की कुछ शर्तें मुझे पसंद नहीं ।
अमीर खेतों में उगती है गरीबी ‘मिलन’
इंसानों में इतने फासले मुझे पसंद नहीं ।।
मिलन ” मोनी “
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