” भूल की हमने “
मुल्क का मेहमान समझा भूल की हमने,
हैवान को इन्सान समझा भूल की हमने ।
इश्क जताया बहुत पर किया नहीं कभी,
और उन्हें नादान समझा भूल की हमने ।
जो कुछ कहा तुमने वही तो किया मैने,
उसका फरमान समझा भूल की हमने ।
इब्तिदा को इन्तेहा मान लिया सफर में,
जमीं को आसमां समझा भूल की हमने ।
हुस्न को निखारा नहीं आइने के सामने,
कर्ज का मकान समझा भूल की हमने ।
वो नजदीक से नजदीकतर आते गए,
ये बहुत एहसान समझा भूल की हमने ।
मुश्किलें जो मिलीं ‘मिलन’ राहें शौक में,
उनको अरकान समझा भूल की हमने ।।
मिलन ” मोनी “
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