Murga Murgi

28 Oct

” मुर्गा मुर्गी “

घर की मुर्गी दाल बराबर,

घर का मुर्गा भात बराबर।

मिल जाएं दोनों कहीं तो,

दोनों का है साथ बराबर।

ना मिल पाएं अगर वो तो,

दोनों की हो मात बराबर।

मुनासिब मिकदार में मिले,

बन जाए खिचड़ी बराबर।

मुर्गा मुर्गी अलग नहीं हैं,

बनते हैं हालात बराबर।

मुर्गा कहे दिल की रानी,

सजती नहीं रात बराबर।

मुर्गी कहे वक्त नहीं मिले,

कौन करेगा काम बराबर।

एक पूरब तो एक पश्चिम,

दोनो की ना चाल बराबर।

फिरभी मिलकर दोनों ही,

जायका बन जाएं बराबर।

नहीं एक से पर साथ रहें,

यही बने परिवार बराबर।

हर घर में इनके ‘मिलन’,

मिलते नहीं संवाद बराबर।।

मिलन ” मोनी “

Leave a comment