” उलझन “
बच्चा रोने पे आय तो उलझन तो होती है,
खाना ही न खाय तो उलझन तो होती है ।
मौज मजे कर, देर रात को घर आए और,
चाबी गुम हो जाएं तो उलझन तो होती है ।
शादी की महफिल में नाचते नाचते सही,
पैंट गर फट जाए तो उलझन तो होती है ।
शानदार और नए नए आफिस में जाकर,
जूता नया चर्राय तो उलझन तो होती है ।
जाना पहचाना मेहमान भी घर आए,
देर तक न जाए तो उलझन तो होती है ।
अभिनेता जैसे राजनेता आयने के सामने,
खुद को झूठा पाए तो उलझन तो होती है ।
जाने या अंजाने छोटी सी किसी बात पे,
दोस्त दुश्मन हो जाए उलझन तो होती है ।
रूखा सूखा मौसम, अनमना सा वक्त रहे,
मन को कुछ ना भाए उलझन तो होती है ।
एक जिद को बार बार नाकारा पर सनम,
वो ही गाना गाए तो उलझन तो होती है ।
बिछड़ कर इतने दिनों बाद मिले ‘मिलन’
ना बिस्कुट ना चाय हो उलझन तो होती है ।।
मिलन ” मोनी “
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