शाम के बाद अंधेरों से कनारा करने
दिल जलाना पडा हमको चरागा करने !
सौप दीं पतवारें सफीने की मझधार को
कश्तियों का साहिल तक सहारा करने !
न कट सकी रात तेरे बिना तो बैठ गए
सागरों-खुम से बाक़ी का गुज़ारा करने !
इश्क का धुँआ ये पहुंचा दरो-बाम तक
इकठ्ठा हो गए बाहर लोग नज़ारा करने !
इशारे इशारे में हमने दिल लिया दिया
आया हूँ मैं आज फिर वो इशारा करने !
ज़माना हो गया ‘मिलन’ शरारतें किये
आया हूँ मैं आज वो सब दोबारा करने !!
मिलन “मोनी”
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