Kanaaraa Karne

20 Jul

शाम के बाद अंधेरों से कनारा करने
दिल जलाना पडा हमको चरागा करने !

सौप दीं पतवारें सफीने की मझधार को
कश्तियों का साहिल तक सहारा करने !

न कट सकी रात तेरे बिना तो बैठ गए
सागरों-खुम से बाक़ी का गुज़ारा करने !

इश्क का धुँआ ये पहुंचा दरो-बाम तक
इकठ्ठा हो गए बाहर लोग नज़ारा करने !

इशारे इशारे में हमने दिल लिया दिया
आया हूँ मैं आज फिर वो इशारा करने !

ज़माना हो गया ‘मिलन’ शरारतें किये
आया हूँ मैं आज वो सब दोबारा करने !!

मिलन “मोनी”

Leave a comment