Aaja zara

9 Dec

” आजा जरा “

रात ढलती रही,

प्यास बढ़ती रही,
मेरी बाहों में आजा ज़रा !

चांद निकला अभी,

चांदनी आ खिली,
मेरे ख्वाबों में आजा ज़रा !!

मुझे नींद आती नहीं बिस्तरों पर,
पलकें बिछाया करो,
फीकी सी लगने लगीं है दीवारें,
सपने सजाया करो !
है हुस्न तुम्हारा बहुत खूबसूरत,
आंखों में ठहरा करो,
नजर भर के तुमको देखा करूं में,
आंचल हटाया करो !

सजने संवरने की क्या है ज़रूरत,
वक्त पर ही आजा ज़रा !
इन बाहों में आजा ज़रा !!

कोई शिकवा नहीं,
कुछ शिकायत नहीं,
उलझनें सुलझाया करो,

बदली में चंदा ये जांचता नहीं,
जुल्फो को संवारा करो !
जो होंठ नहीं कहते,
इशारों से सुनाया करो,
इश्क से बढ कर कोई,
इबादत न बताया करो !

झूठे बहानों की क्या है ज़रूरत,

नजदीक आजा ज़रा !!

इन बाहों में आजा ज़रा !!

रात ढलती रही,

प्यास बढ़ती रही,

बाहों में आजा ज़रा ,!!

मिलन “मोनी”

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