Kaalchakr

10 Feb

कभी बनते बनते बन जाती है
कभी ठनते ठनते ठन जाती है !

न चाहते हुए भी आपको नज़र
कंभी बचते बचते लग जाती है !

फ़ोकट का खाने वालों की घंटी
कभी बजते बजते बज जाती है !

राज नेताओं के इल्म की बत्ती
कभी जलते जलते बुझ जाती है !

रौशनी चरागों में रात होने पर
कभी बुझते बुझत जल जाती है !

खुशियों की यह धूप सहन में
कभी ढलते ढलते ढल जाती है !

आदत बुरी जल्दी ज़िन्दगी में
कभी लगते लगते लग जाती है !

कालचक्र की यह गाडी ‘मिलन’
कभी चलते चलते रुक जाती है !!

मिलन “मोनी”

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