Chali Gayi Hai

10 Jun

इस बस्ती से ही शायद,
वह चली गयी है,
आँगन की तुलसी तक,
देखो झुलस गयी है !

सूरज की पहली किरण,
आई नहीं जगाने,
पुरवाई की दस्तक तक,
आई नहीं बुलाने,
सावन की बदरी तक,
सूखी गुज़र गयी है !!
इस बस्ती से ही शायद,
वह चली गयी है !!

बस्ती में, गलियों में,
चहल-पहल नहीं रही,
पीपल की छाव तले,
शीतलता नहीं रही,
प्यासी बछिया तक,
देखो बिलख गयी है !!
इस बस्ती से ही शायद,
वह चली गयी है !!

सूखे खेत, सरोवर सूखे,
तन भूखे, मन भी भूखे,
खुशहाली के पत्ते सूखे,
उम्मीदें तक,
अब तो बिखर गयीं हैं !!
इस बस्ती से ही शायद,
वह चली गयी है !!

इस बस्ती से ही शायद,
वह चली गयी है !
आँगन की तुलसी तक,
देखो झुलस गयी है !!

5 Responses to “Chali Gayi Hai”

  1. mukul chand June 10, 2016 at 3:34 am #

    very nice kavita

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  2. mohanpatel84 June 13, 2016 at 3:11 pm #

    आपकी कविता बहूत अच्छी लगी पर कविता के अन्त तक प्रश्न बना हुआ है, कौन?…

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    • milanbhatnagar June 14, 2016 at 2:10 am #

      वही, जिसके आने से बहार आती है और जाने से खिजा , यानी प्रियसी

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